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पहाड़ का धर्म है
समय बीतने जाने के साथ साथ
धसक-टूट टूट कर बरसातों में करना कोशिशें
एक दिन खुद के भी सपाट मैदान बन जाने की
पहाड़ हमेशा यही कोशिश करता आया है
और वही कोशिशें उसने कीं इस बार भी
बादलों का धर्म है
समंदर से भर ले जा अथाह जलराशि
बरस कर उड़ेल देना उस को
प्यासे जंगल, मैदानों और पहाड़ों में
बादल कैसे अपने फर्ज से पीछे हट जाते
और धर्म निभाया गया घनघोर बरसकर
इंसान का धर्म है
अपनी सात पुश्तों के इंतजाम की खातिर
हर उस चीज को घेरना हड़पना कब्जाना
जो दिखती हो उसको आँखों के सामने
पहाड़ हो, जंगल या नदी का किनारा
और इन्हें रौंद धर्म निभाने में चूक नहीं की गयी
नदी का धर्म है
पहाड़ पर बरसे पानी की हर उस बूंद को
जिसे पहाड़ सोख नहीं पाया किसी कारण
सहेज कर ले जा सौंप देना समंदर को
चाहे रास्ता बनाने में उजड़ें इंसानी बस्तियाँ
और नदियाँ अपने मकसद में कामयाब हुई
ईश्वर का धर्म है
देखते रहना शाँत और निष्पक्ष रहकर
होने देना जो भी आखिरकार होना ही है
फिर भी दिखाना कृपायें किसी को बचाकर
और किसी को असमय अपने पास बुलाकर
और ईश्वर कब धर्म से अपने पीछे हटा है
हम सबका धर्म है
सबके अपने धर्म-पालन की वजह को जान
पहले भी हुऐ अन्य वाकयों की तरह ही
इस हादसे को भी जल्दी से जल्दी भूलकर
अगले नये हादसे का करते रहना इंतजार
और धर्म पालन करना तो हमें आता ही है
आओ दोस्तों !
अब छोड़ो यह रोना-कोसना-कलपना
आओ एक बार हम फिर से लग जायें
वही करने में जो करते आये हैं आज तक
पहले की तरह अपना धर्म निबाहने में
और धर्म निभाना सबसे जरूरी तो है ही
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कल पडोसी टीवी देखने के बाद कहने लगे की चमत्कार देखिये बहन जी की सब टूट फुट गया बह गया इतना विनाश हुआ किन्तु शिवलिंग का बाल भी बांका नहीं हुआ भगवान बिलकुल सुरक्षित है , उनके असतित्व को इतना बड़ा विनाश भी हिला नहीं सका , मैंने कहा की चमत्कार तो तब होता जब मंदिर का विनाश भले हो जाता लेकिन वो ढाल बना कर सभी की जान बचा लेता , चमत्कार तो उसे कहते जब शिवलिंग भले टूट जता किन्तु एक इंसान का भी बाल भी बांका न होता , वो चुप रहा गए किन्तु मालूम है की कुछ विद्वानों के पास इसके लिए जरुर हजारो तर्क होंगे , इंतज़ार कीजिये ऍफ़ बी पर जल्द ही इस चमत्कार का महिमा मंडन शुरू हो जाएगा :(
जवाब देंहटाएंस्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हूँ !
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मैं भी... और कुछ ऐसी ही मन:स्थिति से यह पोस्ट उपजी है... सबको कोसती हुई सी...
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kya baat hai sir jee, chha gaye !
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आप मुझे समझे, आभार आपका...
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अब क्या बताएँ।
जवाब देंहटाएंलोग कह रहे हैं कि देखा इतना कुछ हुआ फिर भी वहाँ शिवलिंग का कुछ नहीं बिगडा जबकि पूरा मंदिर बह गया ।
hamara comment to baahar nikal dijiye
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अंशुमाला जी,
क्षमा चाहता हूँ कि आपका कमेंट स्पैम से बाहर निकालने में देर हुई, पर मैं पोस्ट लिखने के बाद नेट पर आज ही आ सका... वैसे मुझे हैरानी यह भी है कि बिना किसी लिंक युक्त आपके कमेंट स्पैम में क्यों चले जाते हैं, क्या आप कहीं और लिख फिर उसे टिप्पणी बक्से में पेस्ट करती हैं ?
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@ अंशुमाला जी व राजन जी,
पोस्ट के साथ लगे चित्र में साफ दिख रहा है कि केवल मंदिर ही नहीं दस पंद्रह इमारतें भी नुकसान झेलने के बाद भी बच गयी हैं और अपनी जगह खड़ी हैं... और मीडिया में अनेकों वीडियो ऐसे भी चल रहे हैं जिनमें जमीन धसकने के कारण छोटे बड़े अन्य मंदिर जल प्रवाह में बहते-समाते दिख रहे हैं...
पर फिर भी लोगों का क्या... वह तो कहेंगे ही... यह उनका धर्म है... वैसे भी चित, पट और अंटा... सब उसी का जो है!...
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यही बात मैंने भी उनसे कही थी पर कोई फायदा नहीं हुआ।
हटाएंसही बात प्रवीण जी।
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धन्यवाद संजय जी...
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अरे यार ये स्पैम में कमेंट जाना भी बड़ी बुरी बीमारी है।अब देखिए न जो बात अंशुमाला जी ने लोगो के सोच के बारे में इतने विस्तार से कही वही उदाहरण मैंने भी दोहरा दिया क्योंकि मुझे उनकी टिप्पणी दिख ही नहीं रही थी।पर बाद में पढने वाले तो सोचेंगे कि इसे ये बात दोहराने की क्या ज़रूरत थी।
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी,आपसे गुजारिश है कि पोस्ट लिखने के दो तीन दिन तक तो अपना स्पैम बॉक्स बार बार चैक करते रहा करें वर्ना अजीब सी स्थिति हो जाती है।एक नारी ब्लॉग ऐसा है जिस पर ये बात कहने की जरूरत नहीं पड़ती।कमेंट कुछ देर बाद ही बाहर आ जाते हैं।नहीं तो कुछ पोस्ट्स पर तो कई कई दिन तक मेरी टिप्पणियाँ प्रकाशित ही नहीं की गई।बाद में मैंने कहना ही छोड़ दिया।
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राजन जी,
मेरे अनुमान से कमेंट स्पैम में तभी जाते है जब या तो उनमें कोई लिंक हों या कमेंट बॉक्स में सीधे न लिख कर कहीं और लिखा उसमें पेस्ट किया गया हो... मैं नेट पर ज्यादातर समय नहीं रहता, इसलिये देर हो जाती है, क्या करूँ, मजबूरी है दोस्त... :(
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राजन जी
हटाएंइसमे कौन सी बड़ी बात है की हम ने एक ही बात दोहरा दी , यही बात कई दुसरे भी दोहरा रहे है , रविश जी , सतीस जी भी यही बात दोहरा रहे है , क्योकि टीवी पर जिस तरह से इस बात को चीख चीख को दोहराया जा रहा था उससे सभी को यही आशंका थी , और लोगो ने हमारी बात का पूरा सम्मान किया और अपना धर्म निभाना भी शुरू कर दिया , देखिये मैंने यहाँ कल टिप्पणी की और आज एफ बी पर हरिद्वार में शंकर जी के कंधे से बहती नदी की तस्वीर आ गई " कितना अतभुत दृश्य है लाइक कीजिये आप के साथ अच्छा होगा , अनदेखा न करे शेयर करे "
गधो को कौन बताये की ये नदी ऊपर कितनी को लील कर यहाँ आई है , और बाद में उस शंकर जी को डूबा कर ले भी गई , और कुछ साल पहले भी बहा ले गई थी ये नई मूर्ति वहा लगी थी , इसमे अदभुत क्या है , जो भगवान खुद को न बचा सके अपने भक्तो को न बचा सके जो इतने कष्ट सह कर वाह गए थे वो इस फोटो को लाईक करने से हमारा क्या भला करेंगे , जो मुसीबत में बेचारे फंसे है उनका कर दे वही बड़ी बात है ।
चूंकि मानव मेमोरी बहुत कमजोर है। यह सब भूल अपने धर्म के पालन में जरूर जुटेगा वह। निश्चिंत रहें। बस कुछ दिनों की मोहलत दें!
जवाब देंहटाएंअगर यह सच है कि भगवन कण कण में है तो आप जहाँ खड़े हैं, भगवान वहां भी हैं, फिर यह मंदिर वह भी पहाड़ों पर बने मंदिर जाना या और कहीं भटकना अपने खुद पर और भगवान् पर विश्वास ना करने के बराबर है..हाँ यदि आप पर्यटक के रूप में पहाड़ देखने निकले तो और बात है
जवाब देंहटाएंlatest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(22-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
insaan jise dharm nibhana kah kar nibhata hai kya vakai vahi dharm ka nirvaah hai?? agar dharm ka nirvaah hota to aisi vipatti kyon aati ??
जवाब देंहटाएंअफ़सोस ही है इस त्रासदी के समाचार सुनकर/देखकर ।
जवाब देंहटाएंबहुत गुमान था,नदियों को बांधते, मानव
जवाब देंहटाएंकेदार ऐ खौफ में ही, उम्र, गुज़र जायेगी !
प्रकृति देती है भरपूर मगर इंसान हद करे पार तो ब्याज सहित वापस ले लेती है , त्रासदी ने दिया भारी सबक !
जवाब देंहटाएंआओ दोस्तों !
जवाब देंहटाएंअब छोड़ो यह रोना-कोसना-कलपना
आओ एक बार हम फिर से लग जायें
वही करने में जो करते आये हैं आज तक
पहले की तरह अपना धर्म निबाहने में
और धर्म निभाना सबसे जरूरी तो है ही
...बहुत सटीक ...यही तो चल रहा है ...
सबने अपना अपना धर्म बना लिया है ....आज तक कौन कुछ भी करने से पहले इश्वर से पूछता है ...कर्ता-धर्ता सब इंसान ही तो है ...फिर अच्छा हुआ तो खुश बुरा हुआ तो दोष मढना खूब आने लगा है उसे ...
कुछ और लिखते क्यों नहीं?
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