मैं तो 'काले' को 'काला' ही कहूँगा और 'सफेद' को 'सफेद' भी, आप की मर्जी आप मुझे जो कुछ भी कहो . . .
शुक्रवार, 20 नवंबर 2009
जी हाँ, मैं ही हूँ "शाश्वत सत्य"... और आप चाहो या न चाहो.. थोड़ी देर बाद आपका ही एक हिस्सा बनने जा रहा हूँ !!! ...
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जिज्ञासु मित्रों,
आज कथा सुना रहा हूँ आपको "शाश्वत सत्य" की...उसी के शब्दों में...
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मैं कब से ऐसा ही हूँ, मुझे खुद भी नहीं पता...शायद अनादिकाल से किसी दूसरे रूप में रहा ही नहीं मैं... जो आज मैं सुना रहा हूँ वो तो मेरी कहानी का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है...
चलिये शुरू करते हैं...
एक सेब के अन्दर था मैं अफगानिस्तान की खूबसूरत वादियों में... पकने पर बागबान ने सेब तोड़ा, पैक किया और बाजार भेज दिया...बाजार में सबसे पहले बिकी वो रसीले सेबों की पेटी...और उतारी गई एक कैम्प में... जहां सुबह की नमाज के बाद लम्बी दाड़ी वाले एक शख्स ने मिशन पर जाने से पहले मेरे वाले सेब का नाश्ता किया और सेब के साथ साथ मैं भी पहुँच गया उसके पेट के भीतर...वक्त ने मेरा अगला पढ़ाव तय करना था कि अचानक... दुनिया ने एक जोर का धमाका सुना... एक बार फिर अफगान सेना पर 'फिदायीन सुसाइड बॉम्बर' ने हमला किया था...५ सैनिक और १० बेकसूर नागरिक, जिनमें ४ बच्चे थे, 'जेहाद' की भूख का पेट भरने के काम आ गये... धमाके की गर्मी इतनी थी कि मैं भी भाप बन कर उड़ चला...
अगला ठिकाना था बादलों की गोद में...मौसम बदले...कुदरत ने खेल खेले... तेज हवायें चली... बादल उड़े... अचानक लो प्रेशर जोन बना... बरसात हुई और मैं भी पहुँच गया 'जम-जम' के चारों ओर की पहाड़ियों पर... मिट्टी, रेत और चट्टानों के बीच सफर करते हुऐ न जाने कब और कैसे मैने अपने को पाया 'जम-जम' के भीतर...
आमिर आया था अपनी दादी के साथ हज करने... 'जम-जम' का पवित्र जल भर अपने वतन ले आया वो... वतन था हिन्दुस्तान... मैं भी था उस बर्तन के भीतर...
बहुत सारे लोग आये हाजी आमिर और उसकी दादी के स्वागत को... एक बड़े से बाग में इकठ्ठा थे लोग... सब गले मिले आमिर से... फिर आमिर ने 'जम-जम' का पवित्र जल बांटना शुरु किया... एक बूंद छिटकी... और मोती सी दमकती उस बूंद के भीतर मैं भी पड़ा रहा रात भर दूब घास पर... दूसरे दिन सूरज की तपिश बर्दाश्त नहीं हुई... और फिर मैं उड़ चला...
इस बार बादल उड़े उत्तर की ओर...और बर्फ बन कर आये जमीन पर...उसी बर्फ के बीच पड़ा रहा मैं गर्मी आने तक...गर्मी में गोमुख ग्लेशियर की बर्फ पिघली...और मैं भी आजाद हुआ...बहता रहा गंगा में...'हर की पैड़ी' पर अमर ने गंगाजली भरी... और मैं गंगाजली के भीतर...
बड़े ही दुख का माहौल था जब अमर घर पहुंचा... "अरे कोई सोने का टुकड़ा और गंगाजल डालो दादाजी के मुँह में"...मुझे तो कुछ समझ नहीं आया मेरे मुंह में जाते ही क्यों और कैसे दादाजी के प्राण-पखेरू उड़ गये तुरंत इहलोक को...
फिर चंदन की चिता सजी...मुखाग्नि दी गई...और पंचतत्व का शरीर पंचतत्व में मिल गया...और मैं एक बार फिर से बादलों के बीच...
एक बार फिर बरसे बादल...बारिश की बूंदों के बीच मैं पहुंचा एक बड़े से तालाब में... वक्त ने फिर करवट ली और मैं बन गया हिस्सा एक मछली के शरीर का...
पीटर रोज नियम से आता था मछली पकड़ने...और एक दिन मेरी वाली पूरे डेढ़ किलो की मछली फंस ही गई उसके कांटे में... शाम को पीटर के घर दावत हुई...और उसी मछली के एक टुकड़े के जरिये मैं पीटर का हिस्सा बन गया... और बना रहा उसकी आखिरी सांस तक...
बुढ़ापे से लड़ते लड़ते एक दिन पीटर ने भी हार मान ली...पूरा मोहल्ला आया उसकी अंतयेष्टि में...मैं भी दफन हो गया छह फुट नीचे पीटर के 'मोर्टल रिमेन्स' के साथ...
दिन साल में बदले...और कुछ साल बाद ही मैं हिस्सा बन गया मिट्टी का...जहां से एक पेड़ की जड़ ने मुझे अंदर खींचा और पहुंचा दिया अपने फूल तक... उन सफेद सुगंधित फूलों का गजरा बना... बाजार में बिका...एक चुलबुली शरारती लड़की ने दिन भर बालों को सजाया उससे और रात को फेंक दिया पार्क के एक कोने में...
मेरा फूल भी मुरझाया... फिर धूप की मार लगी...उष्मा मुझसे सहन नहीं हुई और मैं एक बार फिर आसमान में बादलों की गोद में...
इस बार बादल बरसे हैं आपके शहर के करीब... खेत खेत, गांव गांव, नाली नाली बहता हुआ पहुंचा मैं उस नदी में... जहां से पानी पम्प किया जाता है वाटर ट्रीटमेंट प्लान्ट के लिये... ट्रीटमेंट फिर क्लोरीनेशन और सप्लाई...
अरे हाँ चौंकिये नहीं... इसी तरह मैं यानी "शाश्वत सत्य" आज आपके सामने हूँ... आपके चाय, कॉफी, सूप, जूस, शरबत या पानी के गिलास में...
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद जब आप अगला 'सिप' लेंगे... तो मैं आपका भी हिस्सा बन ही जाउंगा... आप चाहो या न चाहो...
विशेष टिप्पणी:-
जल यानी पानी यानी WATER के एक अणु (MOLECULE) की सच्ची कहानी है यह, वर्णन को सरल बनाये रखने के लिये मैंने यानी ब्लॉगलेखक ने इस अणु (MOLECULE) का नाम रखा है "शाश्वत सत्य"...
अब देर किस बात की है घूंट भरिये और शाश्वत सत्य को अंगीकार करिये।
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13 टिप्पणियां:
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बहुत जबरदस्त लिखा है. बँधे पढ़ते चले गये सदियों का सफर मिनटों में और फिर अंगीकार कर लिया उस शाश्वत सत्य को!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
बहुत बढ़िया | पढना शुरू करने के बाद पता ही नहीं चला कैसे बंधे हुए पढ़ते चले गए |
जवाब देंहटाएंअच्छा है। यह भी पढिये www.amrithindiblog.blogspot.com
जवाब देंहटाएंपानी की बूँद के बहाने सबको उनकी औकात बता गए, लड़ने वालों को उनकी बेवकूफी दिखे - आइना दिखा गए!
जवाब देंहटाएंब्लॉगरी का सम्प्रेषण ऐसा ही होना चाहिए।
प्रवीण जी, आपकी लेखनी का कायल हो गया। बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएं--------
क्या स्टारवार शुरू होने वाली है?
परी कथा जैसा रोमांचक इंटरनेट का सफर।
bahut saralta se satya ki yatra samjha gaye aap !! kamaal ka lekhan hain aapka !!
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य का सही अन्वेषण किया है सदियों की दास्तान में. यही ब्लॉग की मौलिक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!!
प्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंबड़े आसान शब्दों में मनुष्य के योनि-योनि भटकते रहने का शाश्वत सत्य समझा दिया...
जय हिंद...
एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली कथा के जरिये शाश्वत सत्य की सहज सर्वकालिकता,सार्वभौमिकता का सुन्दर आख्यान ! इस धरा का सच भी पानी ही हैमाने तो !
जवाब देंहटाएंएक मंत्रमुग्ध कर देने वाली कथा के जरिये शाश्वत सत्य की सहज सर्वकालिकता,सार्वभौमिकता का सुन्दर आख्यान ! इस धरा का सच भी पानी ही हैमाने तो !
जवाब देंहटाएंबहुत जबरदस्त लेखन
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य का सही वर्णन
आभार व शुभ कामनाएं
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क्रियेटिव मंच
इस शाश्वत सत्य को नैनें भी अपने अंदर बसा लिया जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! आज फ़िर से बांचा तब सोचा बता भी दें कि पढ़ लिये हैं।
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